बरसने लगे यू ही बादल
पूछ तो लेना था
लिख रहा था चुपचाप, चीर दिया आकाश
बिजली ने
पूछ तो लेना था ?
और थम से गये हाथ क्योकि मन खो गया बूंदो की बात समझने में
मेरे से अनजान होकर लगा बूंदो को समझने?
पूछ तो लेना था।
पूछ तो लेना था , बिना पूछे निकल पड़ा एक आंसू
और फिर उस रूठें को मनाने
निकल पड़े बाकी भी.
पूछ तो लेना था
बादल, बिजली, बूंदें, मन, आंसू
निकल पड़े सब एक साथ एक कारवां में
और मैं, रह गया।
जैसे मील का पत्थर .
पूछ तो लेना था ?
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